Friday, January 10, 2025

कदम-कदम हो, मुझे जलातीं,

 इंसान तो समझो, चूल्हा नहीं है


भले ही कोई साथ नहीं है, भले ही, हाथ में हाथ नहीं है।

दूरी भले ही बनाई तूने, नहीं कहा कभी, साथ नहीं है।

एकान्त में प्रेम का गीत था गाया, खींच मुझे था गले लगाया।

जीना ही अब भूल गया हूँ जबसे तुमने है ठुकराया।

अकेलेपन की चाह नहीं है. खुद की खुद को थाह नहीं है।

पल-पल मिलने की तड़पन है, कहता फिर भी आह नहीं है।

खुशियाँ देना चाहा तुमको. दुखी हृदय पाया था तुमको।

खुशियों के पथ जाओ प्यारी, तुम्हें नहीं, ठुकराया खुद को।

तुम्हारे बिना मैं क्यों जीता हूँ? पढ़ नहीं पाता, अब गीता हूँ।

अमी तुम्हारे हाथ में था बस, क्षण-क्षण अब तो विष पीता हूँ।

आज भले ही दूर हूँ तुमसे, दिल में हो तुम, निकाला नहीं है।

मुझे छोड़, तुम बनी हो सबकी, झुकाया कभी भी माथ नहीं है।

जीना ही अब भूल गया हूँं. देखो कितना कूल भया हूँ।

तुमने सब कुछ सौंप दिया था, लूटा गया हूँ, लुट ही गया हूँ।

मजबूरी अब नहीं तुम्हारी, साथ चलें अब आओ प्यारी।

मनमर्जी तो नहीं चलेगी, मिलकर सजेगी, जीवन क्यारी।

तुम्हारे बिन मुझे जीना नहीं है. अमी भले हो पीना नहीं है।

जग में नहीं कोई आकर्षण, साथ तुम्हारा पसीना नहीं है।

साथ बहुत हैं संगी-साथी, हथिनी को मिल जाते हाथी।

जिनको अपना समझ रही हो, ठुकराएंगे वे सब साथी।

हम पर नहीं विश्वास, न सही, अपने आपको मत ठुकराओ।

ठोकर हमको मारो भले ही, खुद को. खुद के, गले लगाओ।

जीवन पर विश्वास अभी भी, आओगी, इसे भूला नहीं है।

कदम-कदम हो, मुझे जलातीं, इंसान तो समझो, चूल्हा नहीं है।


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