मित्रो! 1986 में बी.काम. में प्रवेश के साथ ही हिसाब लिखने की
आदत बनाई थी, जो लगातार अब तक जारी रहा। किन्तु अब जब
हमारे जीवन का हिसाब-किताब ही गड़बड़ा गया, तो रुपये-पैसों का
हिसाब रखना निरर्थक प्रतीत होता है! अतः अब हिसाब-किताब
लगाना छोड़ रहे हैं-
जीवन हमरा लुट गया, धन का रखें हिसाब?
पैंतालीस बीत गये, समय का करें हिसाब॥
आदत बनाई थी, जो लगातार अब तक जारी रहा। किन्तु अब जब
हमारे जीवन का हिसाब-किताब ही गड़बड़ा गया, तो रुपये-पैसों का
हिसाब रखना निरर्थक प्रतीत होता है! अतः अब हिसाब-किताब
लगाना छोड़ रहे हैं-
जीवन हमरा लुट गया, धन का रखें हिसाब?
पैंतालीस बीत गये, समय का करें हिसाब॥
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