Tuesday, October 13, 2009

देखो तो तुम डरा अंधेरा सरपट भागा,

ज्ञान का दीप

गली-गली आंगन-आंगन में

ज्ञान का दीप जलाएं पावन

करें रोशनी रंग बिरंगी

भारत हो जाये शतरंगी

सबका हृदय लुभाये भारत

विश्व गुरू कहलाये भारत

देखो तो तुम डरा अंधेरा सरपट भागा,

देश हमारा इसने त्यागा

ज्ञान उजाला कैसा होगा

सूर्य चन्द्र के जैसा होगा

हरसेगा जन-गण का मन

हृदय बनेगा निर्मल पावन

दीपोत्सव आया मन-भावन।

2 comments:

  1. i really like such poems... the poem is saying the fact about the India as VISVA GURU. but i m so tense about the fact that now our nation is going back in many fields, like our national game Hockey, we all know the current condition, and the time when India was the only winner country over the world over the yrs.

    i'd like to appeal all the youths specially that common youngesters... lets make the country best and champion again in all fields..

    thanks againg for such motivating poems...

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  2. ईश्वर आपका स्वप्न पूरा करें राष्ट्रप्रेमी जी ! शुभकामनायें !

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