महिलाएं सदियों से प्रताड़ित की जाती रही हैं। इस विचार को लेकर न केवल असंख्यों पन्ने रंगे गए हैं, वरन अनेक क़ानून भी बने हैं। निश्चित रूप से किसी विशेष वर्ग को अन्याय से बचाने के लिए क़ानून बनाए ही जाने चाहिए किंतु यह सुनिश्चित अवश्य किया जाना चाहिए की क़ानून ही अन्याय का साधन न बन जायं। मैं वैयक्तिक रूप से महिला अधिकारों को प्रभावी बनाने का ही पक्षधर हूँ किंतु पिछले एक दशक में अनुभव से प्रतीत होता है की क़ानून बनाते समय और अधिक चिंतन-मनन की आवश्यकता है। मैं आपको बिना किसी पूर्वाग्रह के निम्न लिखित बिन्दुओ पर चर्चा के लिए आमंत्रित करता हूँ-
१- कन्या भ्रूण हत्या मानवता के लिए अभिशाप है, इसे रोकने मे हम असफ़ल रहे है। यह केवल महिलाओं के लिए ही अन्यायपूर्ण नहीं है वरन सम्पूर्ण समाज के अस्तित्व के लिए ही घातक है। महिलाओं की कमी के कारण निम्न-मध्यम वर्ग शादी न हो सकनें की परेशानियों से अधिक जूझ रहा है। दहेज़ प्रतिष्ठा का विषय होने के कारण यह वर्ग लड़की पक्ष से गुप्त सौदा करता है कि वे लोग दिखाने के लिए दहेज़ दें। सम्पूर्ण खर्च लड़के वाले करते हैं किंतु दहेज़ का नाटक किया जाता है। कई बार तो शादी करने की एवज में अच्छी-खाशी रकम वसूल ली जाती है।
२- पैतृक संपत्ति में लड़की के अधिकार को क़ानून भले ही बन गया हो किंतु देश के बहुत बड़े भू-भाग में यह व्यवहार में नही है अर्थात पिता के यहाँ की संपत्ति में से भाग लड़की को नहीं मिलाता।
३-दहेज़ लड़किओं की कमी के कारण लगभग समाप्त हो चुका है। जहाँ शादी हो जाना ही बहुत बड़ी बात हो, वहां दहेज़ की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।
४-दहेज़ निषेध संबन्धी कानूनों के कड़े प्रावधान पारिवारिक मतभेदों में धमकाने के लिए प्रयुक्त किए जाने लगे हैं। धमकाने तक ही नहीं, अलगाव की स्थिति आने पर धन वसूल करने के लिए कानूनों का प्रयोग किया जाने लगा है। देखने में यह भी आ रहा है कि सभी परम्परों को तोड़कर होने वाले प्रेम विवाह करने वाली लड़की भी कुछ समय बाद दहेज़ के आरोप लगा देती है।
५-विचार करने की बात है कि-
क- लडकी पैतृक संपत्ति में से हिस्सा लेकर नहीं आती।
ख- दहेज़ गैर कानूनी और अव्यवहारिक है। दहेज़ के रूप में भी कुछ नही लिया जाता।
ग- अभी भी लड़कियों को लड़कों की तुलना में कम पढाया जाता है।
घ- अभी भी महिलाये सज-धजकर घर मे रहकर मालिकिन बनना ही पसंद करती हैं। परिवार में किसी के नियंत्रण में रहना नही चाहती। विवाद होने पर घर के सभी सदस्यों को फ़साने व अपने लिए ही नहीं अपने भाई-बहनों तक के लिए रकम वसूल करने की इच्छा रखती हैं और कई बार ऐसा ही होता है।
जब वह अपनी पैतृक सम्पत्ति मे से कुछ नही लाई, दहेज़ की तो बात ही ख़त्म हो गयी , उसने परिवार के दायित्वों के निर्वहन में भी रूचि नही ली। बिना किसी योगदान के वह केवल शादी की रस्म के निर्वहन करने से ही पति नाम के प्राणी से आजीवन वसूल करने की हकदार हो गयी क्या यह लड़के पर अत्याचार नहीं है? शादी करना यदि लड़के के लिए अपराध है तो क्यों न अकेले रहने पर विचार किया जाय? वर्तमान वातावरण ऐसा ही बन रहा है कि भविष्य मे लड़के शादियों से बचने लगेंगे जो समाज के अस्तित्व के लिए घातक हो सकता है।
विवेकानन्द जयन्ती पर विशेष
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3 days ago
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