Saturday, February 25, 2017

प्रेम उपकरण ठगी का

ऐसा साथी चाहिए, ऐसी चाहत मित्र।

कुछ न छिपाए, सब सुने, पारदर्शी हो चित्र॥



सच कहने की चाह है, श्रोता चाहूं एक।

सच को कह व सुन सके, मिली न कोई टेक॥



सम्बन्धों की भीड़ में, मिला न मुझको एक।

मन की कह औ सुन सकूं, मिलता कोई नेक॥



प्रेम उपकरण ठगी का, बेच रहे हर रोज।

मैं इसको ढूढ़न चला, पूरी न होती खोज॥



प्रेम नाम पर मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।

अन्दर अन्दर कोसते, पीछे करें उत्पात॥

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