ऐसा साथी चाहिए, ऐसी चाहत मित्र।
कुछ न छिपाए, सब सुने, पारदर्शी हो चित्र॥
सच कहने की चाह है, श्रोता चाहूं एक।
सच को कह व सुन सके, मिली न कोई टेक॥
सम्बन्धों की भीड़ में, मिला न मुझको एक।
मन की कह औ सुन सकूं, मिलता कोई नेक॥
प्रेम उपकरण ठगी का, बेच रहे हर रोज।
मैं इसको ढूढ़न चला, पूरी न होती खोज॥
प्रेम नाम पर मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।
अन्दर अन्दर कोसते, पीछे करें उत्पात॥
कुछ न छिपाए, सब सुने, पारदर्शी हो चित्र॥
सच कहने की चाह है, श्रोता चाहूं एक।
सच को कह व सुन सके, मिली न कोई टेक॥
सम्बन्धों की भीड़ में, मिला न मुझको एक।
मन की कह औ सुन सकूं, मिलता कोई नेक॥
प्रेम उपकरण ठगी का, बेच रहे हर रोज।
मैं इसको ढूढ़न चला, पूरी न होती खोज॥
प्रेम नाम पर मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।
अन्दर अन्दर कोसते, पीछे करें उत्पात॥
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