प्रेम नहीं जग में मिले, नर गरीब यदि होय।
प्रेम जाम जिसने पिया, और अमीर न कोय॥
अन्दर अन्दर काटते, करें प्रेम की बात।
सावधान तू दूर रह, छिप करते हैं घात॥
अपनी धुन में सब लगे, सुनत न कोई बात।
झूठ बोल कर ठग रहे, प्रकट मिलत कह तात॥
सच आत्मा का भोज है, बढ़ता नर का तेज।
झूठ बढ़ाता बोझ है, चिन्ता की सजी सेज॥
सच का ही आंचल गहे, दुश्मन हो संसार।
घर की भी अब चाह ना, धोखे बारंबार॥
ठोकर खाकर सभलते, लगे भले ही चोट।
निर्भय हो विचरण करें, नहीं किया है खोट॥
कर्तव्य कर, फ़ल चाह ना, सस्ता बिकता प्रेम।
प्रेम नाम ठगते यहां, कहते उसको गेम॥
प्रेम जाम जिसने पिया, और अमीर न कोय॥
अन्दर अन्दर काटते, करें प्रेम की बात।
सावधान तू दूर रह, छिप करते हैं घात॥
अपनी धुन में सब लगे, सुनत न कोई बात।
झूठ बोल कर ठग रहे, प्रकट मिलत कह तात॥
सच आत्मा का भोज है, बढ़ता नर का तेज।
झूठ बढ़ाता बोझ है, चिन्ता की सजी सेज॥
सच का ही आंचल गहे, दुश्मन हो संसार।
घर की भी अब चाह ना, धोखे बारंबार॥
ठोकर खाकर सभलते, लगे भले ही चोट।
निर्भय हो विचरण करें, नहीं किया है खोट॥
कर्तव्य कर, फ़ल चाह ना, सस्ता बिकता प्रेम।
प्रेम नाम ठगते यहां, कहते उसको गेम॥
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