साहित्यकार सपना
मांगलिक
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बन्दे मातरम्)
1
जुल्म रक्तपात का ,देश के विनाश का
दह्शाती लूटपाट का ,करें खेल अब खत्म
न कोई दुखी हो न हो सीने में कोई गम
करेंगे नाम रोशन इस सरजमीं का हम
उठा तिरंगा हाथ में कहें बंदे मातरम
संसद इस राष्ट्र की मलंग हो गयी
मर्यादा नीती इनदिनों पतंग हो गयी
नेता भी लो देश से महान हो गए
गद्दारों से सांठगाँठ यही काम हो गए
कुर्सी के खटमलों को खींच फैंक डालें हम
विभीषणों की संख्या करें देश से खत्म
उठा तिरंगा हाथ में कहें बंदे मातरम
टूटा है दिल देश का ,इसे आस चाहिए
रग रग में दौढ़ता नया विश्वास चाहिए
जिस सोने की चिड़िया के पर कतरे हैं लोगो
नए पंख देने को उसे तिलक ,सुभाष चाहिए
फिर से रंगेंगे माँ की चुनरी को हम धानी
लिखेंगे अपने खून से फिर शोर्य कहानी
रख पवित्र अग्नि पे कर ,खाते हैं ये कसम
उठा तिरंगा हाथ में कहें बंदे मातरम
एक रात की नही पलों की बात थी नहीं
मिली यह आजादी हमें खैरात में नहीं
कर शीश कई कुर्बान ,इसको पाया है हमने
आजाद भगत की जान इतनी सस्ती थी नहीं
आये जो दुश्मन सामने उन्हें भून डालेंगे
जमा के धौल पीठ पर इन्हें कूट डालेंगे
जिन्दा ही धरती में उन्हें कर देंगे हम दफ़न
उठा तिरंगा हाथ में कहें बंदे मातरम
साहित्यकार सपना
मांगलिक
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