जहाँ एतबार नहीं, वहाँ प्यार नहीं होता ,
भरी महफिल में भी कोई यार नहीं होता,
चाहे लाख कर ले कोई अपनी कोशिश ,
मगर दिलवर का यूं दीदार नहीं होता।
इसी के दम पै पूरी दुनिया बसी होती है ,
एतबार न हो तो हर वक्त हँसी होती है,
खुद बड़ा होने का जो भूल करते हैं हरदम ,
उन्हें अपनों से ही कभी प्यार नहीं होता ।
जमाने की सोच से जो ताल्लुक नहीं रखते,
उन्हीं का ही अक्सर अलग संसार होता है ,
आभार के दर पै जो भार बन खड़े होते हैं ,
उनके दिल में मुहब्बत का आसार नहीं होता।
बनके ढोंगी जो सदा दरबार लगाए रहते हैं ,
जमावड़ा लोगों का, वहाँ हर बार हीं होता,
प्यार की जीत से जिन्हें होती है सख्त नफरत,
उस जिन्दगी में ‘आनन्द’का इजहार नहीं होता।
ग़ज़लकार-
आर.पी. आनन्द (एम.जे.)
जवाहर नवोदय विद्यालय पचपहाड़,
झालावाड़, राजस्थान।
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