कौने पायो है.......
कौने पायो है तेरो सो गोरी रूप,मेरो तो चित चोरि लियो।।
शीशफूल, नथुनी में मोती, मांग में भरयौ सिन्दूर।
केश पीठ लहराय नागिन से, मनवा लेइ हिलोर।।
जीति बिन शस्त्र लियो।।
सत बिन तेज धर्म बिन तप के को पावे बृजभूमि।
कैसे कर्म किये कान्हा ? तैनें कारो पायो रूप।।
और तेरो कारो ही हीयो।।
कारो सबसे न्यारौ, गौरी कारो नैनन संग ।
कारे नैन, नैन मे रसिया, है गयो कारो रंग।।
नांच कारे पै कीयौ।।
बातें करत बहुत तू कान्हा, प्रगट्यौ कारी रात।
पांच-पांच हैं मैया तेरी , कितने बताओ तात ?
जन्म कुल कौन लियौ।।
टीकौ भेज सगाई करि दई, लई बुलाय बरात।
धन्य-धन्य बरसाने तौकूं? दुलहिन पूछै जात??
नीर कूं छानौ खूब पियौ।।
कौने पायो है तेरो सो गोरी रूप,मेरो तो चित चोरि लियो।।
स्वार्थ की व्यापकता, आवश्यकता व अनिवार्यता
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*सामान्यतः स्वार्थ को बड़े ही संकीर्ण और नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है।
स्वार्थ के अन्य पर्यायवाचियों में, खुदगर्ज, मतलबी, प्रयोजनव...
3 weeks ago
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