Monday, June 7, 2010

धनी हो के जायेंगे

धनी हो के जायेंगे











आये न जाने कितने, टिकट कटाए बिना


सोच-विचार कर, बच कर ही जाएंगे


जीवन गाड़ी लम्बी है, चैकर होगा एक ही


कितना भी ढूढ़ेगा नहीं हाथ आएंगे






भूल से भी यदि हम, नज़र में आ गए


डालकर उसे घास, साफ निकल जाएंगे


घास से न यदि हम, मना पाये उसको


मन्दिर में जाकर, माखन-मिश्री चढ़ाएंगे






नवागन्तुकों से कहें, आओ हमारे पास


गाड़ी में आरक्षण, हम दिलवाएंगे


टिकट वालों को कहें दूसरों में जायें आप


अधिकार हमारा, आप जाने नहीं पाएंगे






खड़े हो गेट पर, बन सेवक जनता के


भरी थी जिनकी जेब, खाली ले के जाएंगे


टिकट खरीदने को, न था धेला इनके पास


`राष्ट्रप्रेमी´ मेवा से धनी हो के जाएंगे

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