तुम नर की स्पंदन हो
तुम ही देवी, तुम्हीं मानवी,
तुम नर की स्पंदन हो।
प्रेम और माधुर्य की मूरत,
नर-नीर तुम चंदन हो।।
ज्ञान-शक्ति और धन की देवी
सेवा कर, बनती हो सेवी
उदारता ही कमजोरी बन रही,
देवी से, बन गई तुम, बेबी।
ज्ञान-शक्ति ले बढ़ो आज,
हम करते अभिनन्दन हो।
तुम ही देवी, तुम्हीं मानवी,
तुम नर की स्पंदन हो।।
किसमे हिम्मत तुम्हें रोक ले?
प्रेम ही है बस, तुम्हें टोक ले।
प्रतिक्रिया वश पथ न भटकना,
नर पीछे है, उसे न झटकना।
खुश रहकर ही, खुशियाँ बाँटों,
रहे न जग में क्रंदन हो।
तुम ही देवी, तुम्हीं मानवी,
तुम नर की स्पंदन हो।।
भ्रूण हत्या में क्यों शामिल होतीं?
कटवाती क्यों? अपनी बोटी!
स्वयं खड़ी हो, करो न अपेक्षा,
नर को तुम ही दोगी शिक्षा।
नर-नारी मिल आगे बढ़ेंगे,
राष्ट्रप्रेमी करे वन्दन हो।
तुम ही देवी, तुम्हीं मानवी,
तुम नर की स्पंदन हो।।
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