Saturday, April 11, 2009

देह अलिखित किताब है,

अलिखित किताब


देह अलिखित किताब है,

पढ़ना इसको भी जरूरी है।

बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते,

उनकी क्या मजबूरी है?

नारी का भी गान यही है,

उसको देह ही समझा जाता।

अध्यात्म भी कहता है वश,

क्षण-भंगुर है इसका नाता।

देह ही तो है देवालय,

अनुभूति इसकी अधूरी है।

बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते?

उनकी क्या मजबूरी है।।

देह बिना अस्तित्व नहीं है,

आत्मा ही बस तत्व नहीं है।

आत्मा इसी में विकसित होती,

देह बिना मनुष्यत्व नहीं है।

देह ही तो साधन है वह,

हर साधना होती पूरी है।

बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते?

उनकी क्या मजबूरी है।।

नर-नारी की विशिष्टता को,

स्वीकार हमें करना होगा।

नारी के सौन्दर्य बोध का,

सम्मान हमें करना होगा।

नर भी नहीं जी सकता है,

नारी ही नहीं अधूरी है।

बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते?

उनकी क्या मजबूरी है।।

आतंक, विद्रोह, हिंसा पर,

नियन्त्रण यदि करना चाहो,

जन्मजात प्रबन्धक नारी,

बागडोर उसको पकड़ाओ।

सभी धर्मो में जितने पद है,

नारी की कमान जरूरी है।

बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते?

उनकी क्या मजबूरी है।।

1 comment:

  1. बुद्धिजीवी क्यों निन्दा करते?

    उनकी क्या मजबूरी है।।

    deh to zroori hai
    kvita ke madhyam se aadhyatm chintn
    bbhut achchha hai .

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