हे मानुष तनधारी!
अर्चना पाठक
हे मानुष तनधारी! निष्ठुर नहीं, तुम मनुष्य बनो।
कहते तो रहते ही हो साहस करके आज सुनो।।
दया तुम्हारा धर्म है,
मदद तुम्हारा कर्म।
जीवन मूल्य से मनुष्य तुम,
वरना सुंदर चर्म।
गिरने से न डरना तुमको, सत्पथ के तुम पथिक बनो।
हे मानुष तनधारी! निष्ठुर नहीं, तुम मनुष्य बनो।।
राह कठिन, कंटक पूरित,
लहूलुहान तुम हो भले ही।
पंच तत्व में मिलेगा,
तन यह सुंदर हो भले ही।
प्रेम में जियो, प्रेम बिखेरो, मानव प्रेम के पथिक बनो।
हे मानुष तनधारी! निष्ठुर नहीं, तुम मनुष्य बनो।।
स्वारथ में जिए हो अब तक,
संग्रह नहीं अब दान करो।
कर्म करो, मत फल को देखो,
खुद पर तुम विश्वास करो ।
बाधाओं से नहीं रुकना है, मानवता के तुम पथिक बनो।
हे मानुष तनधारी! निष्ठुर नहीं, तुम मनुष्य बनो।।
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