नव-आंग्ल वर्ष २०११ में आप सभी का इस ब्लोग पर स्वागत है. नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इस वर्ष का नया पोस्ट- एक कविता
राजभाषा
राजभाषा जिसको कहते हैं, देखो उसमें काम न करते
सड़क से लेकर संसद तक, इसको लिखने से हैं डरते
इसको लिखने से हैं डरते, हमसे हिन्दी में काम न होता
हिन्दी-हिन्दी राग अलापें, काम के नाम उड़ जाते तोता।
राजभाषा हिन्दी को कहते, नहीं राज से इसका नाता
अनुवाद इसमें होता है, वह प्रामाणिक नहीं माना जाता
प्रामाणिक नहीं माना जाता, अंग्रेजी हावी होती है,
अंग्रेजी राजभाषा अपनी, इससे ही चलती रोटी है।
राजभाषा हिन्दी है अपनी- एक संवैधानिक झूंठ
झूंठ के आवरण में लिपटी, भाषा होती ठूंठ
भाषा होती ठूंठ, सरकारी तन्त्र से इसे बचायें
विधायिका, कार्यपालिका, न्यायालय बहलायें।
हिन्दी हित नहीं कर सकता, यह सरकारी तन्त्र।
आत्मा यहां नहीं है मिलती, भ्रष्टाचार है मन्त्र।।
भ्रष्टाचार है मन्त्र, वहां, राजभाषा का मान हो कैसे?
राष्ट्र और राजभाषा से क्या? स्वार्थ साधना जैसे-तैसे.
हिन्दी राजभाषा नहीं, है अंग्रेजी सरताज
स्वीकार इसको करो, बन जाये सब काज
बन जाये सब काज, हिन्दी भी विकास करेगी
इसे तन्त्र से मुक्त करो, विश्व में विजय ध्वजा फहरेगी।
वास्तविकता स्वीकार करो, कब तक गलतफहमी में जीओगे?
दुग्ध नहीं, मदिरा है हाथ में, कब तक दुग्ध समझ पीओगे?
कब तक दुग्ध समझ पीओगे? आगे बढ़ दुग्ध तुम पाओ,
राजभाषा अंग्रेजी है मानो, हिन्दी हित में फिर जुट जाओ।
राजभाषा
राजभाषा जिसको कहते हैं, देखो उसमें काम न करते
सड़क से लेकर संसद तक, इसको लिखने से हैं डरते
इसको लिखने से हैं डरते, हमसे हिन्दी में काम न होता
हिन्दी-हिन्दी राग अलापें, काम के नाम उड़ जाते तोता।
राजभाषा हिन्दी को कहते, नहीं राज से इसका नाता
अनुवाद इसमें होता है, वह प्रामाणिक नहीं माना जाता
प्रामाणिक नहीं माना जाता, अंग्रेजी हावी होती है,
अंग्रेजी राजभाषा अपनी, इससे ही चलती रोटी है।
राजभाषा हिन्दी है अपनी- एक संवैधानिक झूंठ
झूंठ के आवरण में लिपटी, भाषा होती ठूंठ
भाषा होती ठूंठ, सरकारी तन्त्र से इसे बचायें
विधायिका, कार्यपालिका, न्यायालय बहलायें।
हिन्दी हित नहीं कर सकता, यह सरकारी तन्त्र।
आत्मा यहां नहीं है मिलती, भ्रष्टाचार है मन्त्र।।
भ्रष्टाचार है मन्त्र, वहां, राजभाषा का मान हो कैसे?
राष्ट्र और राजभाषा से क्या? स्वार्थ साधना जैसे-तैसे.
हिन्दी राजभाषा नहीं, है अंग्रेजी सरताज
स्वीकार इसको करो, बन जाये सब काज
बन जाये सब काज, हिन्दी भी विकास करेगी
इसे तन्त्र से मुक्त करो, विश्व में विजय ध्वजा फहरेगी।
वास्तविकता स्वीकार करो, कब तक गलतफहमी में जीओगे?
दुग्ध नहीं, मदिरा है हाथ में, कब तक दुग्ध समझ पीओगे?
कब तक दुग्ध समझ पीओगे? आगे बढ़ दुग्ध तुम पाओ,
राजभाषा अंग्रेजी है मानो, हिन्दी हित में फिर जुट जाओ।
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