यदि चाहो आतंक मिटाना
एक राह से नहीं रूकेगा, हर-राह पर चलना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
आतंक नहीं है, नई चीज,युगों-युगों से चलता आया।
प्रति-पल जगकर आगे बढ़,सुरक्षित अपना देश बनाया।
आतंक-रावण हावी है फिर, युवा-राम को जगना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
बम का ही आतंक नहीं है,शोषण भी आतंक मचाता।
नारी भी आतंकित होती,जबरन नर, रंगरेली मनाता।
द्रोपदी चीर-हरण हो रहा, श्याम को फिर से आना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
व्यवस्था, अव्यवस्था कर रही,प्रशासन ही नाकारा हो रहा।
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर,अधिकारी है जेब भर रहा।
भ्रष्टाचार मिटाकर जड़ से, प्रशासन को सुधरना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
जनतंत्र को भीड़तंत्र कर,राजनीति आतंक कर रही।
हिन्दी-मराठी झगड़ा करके,देश को ये, कमजोर कर रही।
जनता को अब जगकर खुद ही, नेताओं को कसना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
अपनी रक्षा सुदृढ़ करके,पड़ोसियों को कसना होगा।
राष्ट्रभाव हर हृदय जगाकर,जन-जन जाग्रत करना होगा।
प्रेम-रंग में रंगकर सबको, अपनत्व का भाव जगाना होगा।
यदि चाहो आतंक मिटाना, मिलकर आगे बढ़ना होगा।।
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