मांगना सबसे बड़ी नीचता है। हमें कभी किसी से कुछ नही मांगना चाहिऐ किसी से भी नहीं यहाँ तक कि ईश्वर से भी नहीं क्योंकि हमारे लिए जो भी आवश्वक है वह ईश्वर ने बिना मांगे प्रदान कर दिया है अब कुछ मांगना नहीं है। कहा भी गया है- मांगन से मरना भला मत कोई मांगो भीख
अत: सभी के प्रति श्रद्धा व सम्मान रखो। निस्वार्थ भक्ति के साथ किसी को भी पूजो किन्तु किसी से भी कुछ मांगकर ईश्वर के प्रति अविश्वाश मत प्रकट करो। अपने पुरुषार्थ से कमाकर देना सीखो। तभी सर्वोच्च सत्ता के लिए कृतज्ञता प्रकट कर पाओगे चाणक्य नीति में लिखा है :
इस संसार में सबसे हलकी घास है , घास से भी हलकी रुई है और रुई से भी हल्का याचक है तो जब उन दोनों को घास और रुई को उड़ाकर ले जाती तो याचक को क्यों नहीं उड़ा ले जाती? इस पर उनका उत्तर है कि वायु उसे उस भय से उड़ा नहीं ले जाती, क्योंकि वह जानती है कि याचक उससे भी याचना करेगा। कहने का आशय यह है कि याचक से सभी दूर भागते हैं । अतः हमें कभी भूल कर भी किसी से याचना नहीं करनी चाहिऐ । ईश्वर से भी नहीं।
“दिल की टेढ़ी-मेढ़ी राहें”
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रोहन एक सफल व्यवसायी था, जो अपने काम में इतना व्यस्त था कि उसे अपने जीवन
में प्रेम की कमी महसूस नहीं होती थी। प्रेम तो क्या रोहन के पास सुख-दुख की
अनुभूति ...
1 week ago

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