कार द्वारा लगभग तीन घण्टे की यात्रा करके मनोज गाजियाबाद पहुँचा था। मनोज अपने दैनिक प्रयोग में आने वाले कपड़े पहने हुए था और कुछ भी नहीं लेकर गया था। हाँ! उसने माया से स्पष्ट कह दिया था कि उसे आभूषण बगैरहा बनवाने में कोई रूचि नहीं है और न ही वह कुछ लेकर आ रहा है। शकुन के तौर पर जो अनिवार्य हो वह माया को स्वयं ही खरीदना होगा। मनोज उसके लिए आवश्यक रूपये पहले ही माया के पास भेजना चाहता था किंतु माया ने कह दिया था कि वहाँ पहुँचने पर ही वह उसके साथ जाकर दुकार से मंगलसूत्र खरीद लेगी। मनोज को कुछ भी मालुम न था कि गाजियाबाद में कौन से आर्य समाज मन्दिर में शादी की व्यवस्था की गयी है। अतः गाजियाबाद पहुँचने पर माया को फोन मिलाया। माया अपने रिश्ते के भाई को लेकर मनोज के पास पहुँची। माया और मनोज को एक स्थान पर मिलने में ही काफी देर हो गयी। माया ने मोबाइल पर जो लोकेशन बताई, मनोज को ड्राईवर बड़ी मुश्किल से वहाँ पहुँच पाया। उसके बाद पूर्व व्यवस्था के अनुसार मनोज ने माया के सामने बाजार चलने का प्रस्ताव रखा। माया ने पहले से ही तय कर रखा था कि किस दुकान पर जाना है। दुकान पर जाने से पूर्व मनोज को रूपये भी निकालने थे। आधुनिक तकनीकी के दौर में मनोज को रूपये लेकर चलना उचित नहीं लगता था। अतः पहले एटीएम की खोज हुई कई एटीएम देखने के बाद रूपये निकल सके। रूपये निकलते-निकलते काफी देर हो चुकी थी। इधर आर्य समाज मन्दिर से माया के चचेरे भाई के पास फोन भी आने लगे थे। उधर एक शपथ पत्र व फोटो भी बनने थे। इस प्रकार भाग दौड़ कर जल्द बाजी में माया ने अपने लिए मंगलसूत्र व एक जोड़ी पायल खरीदीं। इस प्रकार सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद मनोज माया के साथ आर्य समाज मन्दिर में पहुँचा।
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