"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है."
-विवेकानन्द
Sunday, April 30, 2017
चाहत चली, चिन्ता चुकी
चाहत चली, चिन्ता चुकी, नहीं रहे अरमान।
जैसे भी हैं ठीक है, ना चाहत सनमान॥ तू सब कुछ अर्पण करे, चाह न फ़िर भी मान। जो तुझको हैं लूटते, गात प्रेम का गान॥ साथी तू अब खोज ना, खोज न सुख की धार। साथ न तुझको मिल सके, धोखा दे बस यार॥
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