"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है."
-विवेकानन्द
Sunday, April 5, 2015
हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर
सपने में भी नहीं दिखती आप
सपने में भी नहीं दिखती आप मुरझाया वो चाँद दिखा दो, बादलों में छिप जाना आप। टूटी नहीं हमारी आस घोड़ी नहीं हमारे पास फिर भी खोद रहे हम घास। मरूस्थल में भी दादुर मोर नीर नहीं हैं मचाये शोर हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर।
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