होली
होली,
परम्परा को मारे गोली,
खूब करो हुल्लड़,
गुरू के सिर पर,
फोड़ दो कुल्लड़।
गरिमा,
गुरू-भक्ति,
दहन कर दो होरी में
अच्छा मौका है,
आज,
गुरूजी को,
डाल दो मोरी में।
कक्षा में पिलाते थे डॉट
आधुनिक शिष्य,
होली का बहाना,
आज,
गुरूजी की तोड़ दी खाट।
"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है." -विवेकानन्द
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