जीवन मे सत्य और असत्य का निर्णय करना बहुत ही सीधा-सदा व सहज कार्य है। हर व्यक्ति जानता है, क्या सत्य है क्या असत्य? क्या न्याय है क्या अन्याय ? इसके लिए विद्वान होने की आवश्यकता नहीं है। विद्वान व समाज के कर्णधार सत्य को जटिल बनाकर असत्य के निकट ले जाते हैं ताकि वे भ्रम का सहारा लेकर अपने स्वार्थों की सिध्दि कर सके अपनी दुकानदारी चमका सकें। हम विद्वानों से दूर रहकर अपनी स्वार्थ बुध्दि को किनारे करके , परम्पराओं व सामाजिक मान्यताओं को नजर अंदाज करके अपनी आत्मा की बात सुने, आपकी आत्मा ही सत्य की सर्वश्रेष्ठ छवि सामने लाएगी.
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