"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है." -विवेकानन्द
निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।
पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।
सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,
रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥