"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है." -विवेकानन्द
Saturday, August 29, 2015
Monday, August 10, 2015
अधर आपके रस बरसाएँ
किस्मत को हम नहीं थे मानते, आपको किस्मत मान लिया है।
हमारा नहीं, अब कुछ जग में, यश भी व्यर्थ, यह जान लिया है।
सभी हैं अपने, सभी पराये, दिल ने आपको स्वीकार किया है।
अपना दिया नहीं, हमारा लिया है, दिल को लेकर दगा किया है।
जन्म दिन सदैव आपका आये, चेहरे आपके हरपल मुस्काएँ।
मूर्ख बनाओ, हमको कितना, पल भर यदि मुस्कान दिखाएँ।
हम तो अकेले भी जी लेते, तुमको ही साजन मिल जाएँ।
आप रहो खुश , खुशी बिखेरो, अधर आपके रस बरसाएँ।
Monday, August 3, 2015
सामने आये वो मूर्ति आपकी
अपनी गाड़ी दिषा से भटकी, नाव तो है पतवार नहीं है।
नदी में भंवर, तूफान हैं सिर पर, लेकिन खेवनहार नहीं है।
हमने तुमको नैया सौंपी, डुबाओं हमें दरकार नहीं है।
बैठे हैं हम करें प्रतीक्षा, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।
सुखी रहो आप जहाँ भी चाहो, हमारी खुषी हैं खुषी आपकी।
कोई गलती नहीं करी थी हमने, प्रेम अग्नि नहीं पश्चाताप की।
मिलने के ही हम आकांक्षी, हम पूरी करें हर इच्छा आपकी।
एक बार बस एक बार प्रिय, सामने आये वो मूर्ति आपकी।
Sunday, August 2, 2015
नजर मिला कहो प्यार नहीं है
बिखर गए हैं सारे सपने, मंजिल का मुझे ज्ञान नहीं है।
आप से रिश्ता कोई भले नहीं, अलगाव का भान नहीं है।
रिश्ते तो गैरों से होते, अपनों से कोई, व्यवधान नहीं है।
आप भले ही भिन्न समझतीं, अपना-पराया कोई नहीं है।
हम तो एक सदैव रहेंगे, आपको भले ही अहसास नहीं है।
तन से हो जाओ भले दूर, धन की हमें दरकार नहीं है।
मन तो हमें आप दे ही चुकीं हैं, वापसी का आधार नहीं है।
हिम्मत हो तो सामने आओ, नजर मिला कहो प्यार नहीं है।