प्रिय मित्रो
सदर नमस्कार
आज का शीर्षक है बड़ा कोंन इसके संबंध में मेरे विचारों से लिख रहा हूँ कि अगर पांच भाई में से किसी से पूछा जाये कि आप में से बड़ा कोंन है तो उनमें से सबसे पहले जन्म लेने वाला ही कहेगा कि मैं बड़ा हूँ और इसी तरह यदि धरती और आकाश में से पूछा जाये कि आप में से बड़ा कोंन तो धरती कहेगी कि मैं और पूछा जाये कि क्यों तो क्यों कि मैं सभी का पालन पोषण पोषण करती हूँ और आकाश कहेगा कि मैं बड़ा हूँ और पूछा जाये कि क्यों तो क्यों कि मैं सभी को छाया प्रदान करता हूँ इसी प्रकार सूरज और चाँद में से भी पूछने पर भी दोनो अपने आपको बड़ा बताएँगे लेकिन अगर भगवान और भक्त में से पूछा जाये तो भगवान कभी नहीं कहेंगे कि मैं बड़ा हूँ वे तो भक्त को ही बड़ा बताएँगे और कारण भी बता देंगे कि भगवान भक्त की भक्ति के अधीन होते है क्यों कि भक्त चाहे जहाँ भगवान को बुला सकता है अगर उसकी भक्ति में शक्ति है तो इसलिए सबसे बड़ा भक्त है
"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है." -विवेकानन्द
Saturday, December 8, 2007
Thursday, December 6, 2007
Wednesday, December 5, 2007
सबसे बड़ा सुख
अगर किसी से पूछा जाये कि सबसे बड़ा सुख क्या है तो कोई कहेगा कि जिसके पास पैसा है उसके पास दुनिया के सभी सुख है और कोई कहेगा कि जिसके पास संतान है उसके पास सभी सुख है और कोई क्या कोई क्या सुख बतलायेगा लेकिन मेरे विचारों से तो सबसे बड़ा सुख संतोष है यानी आदमी को संतोषी होना ही है जो आदमी संतोष में नहीं जी सकता वह कभी सुखी नहीं हो सकता है इसलिए संतोष ही सबसे बड़ा सुख है
Tuesday, December 4, 2007
मांगे नहीं
मांगना सबसे बड़ी नीचता है। हमें कभी किसी से कुछ नही मांगना चाहिऐ किसी से भी नहीं यहाँ तक कि ईश्वर से भी नहीं क्योंकि हमारे लिए जो भी आवश्वक है वह ईश्वर ने बिना मांगे प्रदान कर दिया है अब कुछ मांगना नहीं है। कहा भी गया है- मांगन से मरना भला मत कोई मांगो भीख
अत: सभी के प्रति श्रद्धा व सम्मान रखो। निस्वार्थ भक्ति के साथ किसी को भी पूजो किन्तु किसी से भी कुछ मांगकर ईश्वर के प्रति अविश्वाश मत प्रकट करो। अपने पुरुषार्थ से कमाकर देना सीखो। तभी सर्वोच्च सत्ता के लिए कृतज्ञता प्रकट कर पाओगे चाणक्य नीति में लिखा है :
इस संसार में सबसे हलकी घास है , घास से भी हलकी रुई है और रुई से भी हल्का याचक है तो जब उन दोनों को घास और रुई को उड़ाकर ले जाती तो याचक को क्यों नहीं उड़ा ले जाती? इस पर उनका उत्तर है कि वायु उसे उस भय से उड़ा नहीं ले जाती, क्योंकि वह जानती है कि याचक उससे भी याचना करेगा। कहने का आशय यह है कि याचक से सभी दूर भागते हैं । अतः हमें कभी भूल कर भी किसी से याचना नहीं करनी चाहिऐ । ईश्वर से भी नहीं।
अत: सभी के प्रति श्रद्धा व सम्मान रखो। निस्वार्थ भक्ति के साथ किसी को भी पूजो किन्तु किसी से भी कुछ मांगकर ईश्वर के प्रति अविश्वाश मत प्रकट करो। अपने पुरुषार्थ से कमाकर देना सीखो। तभी सर्वोच्च सत्ता के लिए कृतज्ञता प्रकट कर पाओगे चाणक्य नीति में लिखा है :
इस संसार में सबसे हलकी घास है , घास से भी हलकी रुई है और रुई से भी हल्का याचक है तो जब उन दोनों को घास और रुई को उड़ाकर ले जाती तो याचक को क्यों नहीं उड़ा ले जाती? इस पर उनका उत्तर है कि वायु उसे उस भय से उड़ा नहीं ले जाती, क्योंकि वह जानती है कि याचक उससे भी याचना करेगा। कहने का आशय यह है कि याचक से सभी दूर भागते हैं । अतः हमें कभी भूल कर भी किसी से याचना नहीं करनी चाहिऐ । ईश्वर से भी नहीं।