Tuesday, October 16, 2018

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३२"‍


मनोज आज जब अपने गुजरे हुए जीवन पर नजर डालता है तो उसे अपने पहले प्रयोग में कोई बुराई नजर नहीं आती। वही परिस्थितियाँ दुबारा उसके जीवन में हों तो शायद सहायता करने से अब भी पीछे नहीं हटेगा। शादी का उसका पहला प्रयोग असफल भले ही रहा हो किंतु उसमें धोखा न था, लालच न था। परिस्थितियों की मजबूरी भले ही रही हो किंतु किसी भी पक्ष की ओर से कोई कपट न था। हाँ! दूसरी बार वह जब वास्तव में शादी करके जीवन संगिनी चाहता था। वह पारिवारिक जीवन जीना चाहता था। वह चाहता था कि उसके बेटे व माँ-बाप की देखभाल में उसकी जीवनसंगिनी सहयोग करे। वह व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में अपने साथ चल सकने वाली जीवनसंगिनी चाहता था। वह चाहता था कि मन, विचार व आचार एक करके वह अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन कर सके। किंतु व्यक्ति जो सोचता है वही तो नहीं होता। मनोज के साथ भी नहीं हुआ और वह आॅनलाइन मैरिज के ऐसे धंधेबाजों के चंगुल में फंस गया कि उस चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता ही नहीं दिखाई देता।


धोखा देकर कपट पूर्वक शादी करके कोई खुश रहने की कल्पना कैसे कर सकता है? मनोज के लिए यह घोर आश्चर्य की बात थी। जब से माया मनोज के पास शादी का नाटक करके आई थी, पहले दिन से ही मनोज के लिए तनाव का वातावरण बन गया था। मनोज को जब मालुम हुआ कि माया अपना मोबाइल लेकर नहीं आई है। उसी से स्पष्ट हो गया था कि दाल में कुछ काला अवश्य है अन्यथा मोबाइल नितान्त व्यक्तिगत उपकरण है और उसे कोई छोड़कर नहीं आता/जाता। ऐसा भी नहीं था कि माया उसे गलती से भूल आई हो। यदि हम मोबाइल गलती से भूल जाते हैं तो वह हमारे परिवार वालों के पास होता है। उसे बन्द नहीं किया जाता। माया तो जानबूझकर अपने मोबाइल को बन्द करके आई थी। शायद नष्ट करके आई थी, क्योंकि बार-बार जोर देने पर उसकी ओर से और उसके भाई की ओर से यही कहा गया कि मोबाइल खराब हो गया है। कोई महिला शादी के बाद अपने मोबाइल को अपने माइके में तभी नष्ट करके आयेगी, जब वह कोई ऐसा धन्धा करती होगी कि ससुराल में मालुम पड़ने के बाद भूचाल आ जाने की संभावना हो या उसके इस प्रकार के फोन काॅल आते हों, जिनको कोई भी सामान्य व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। इस प्रकार माया के द्वारा अपने मायके में मोबाइल नष्ट करके आना, मनोज के लिए प्रथम साक्ष्य था कि अवश्य ही माया शादी से पूर्व गलत गतिविधियों में लिप्त थी।

मनोज के पास आते ही माया के द्वारा मनोज के मोबाइल से एक-एक करके अपने द्वारा भेजे गये सभी सन्देशों को मिटा देना जिनसे माया की वचनबद्धता प्रकट होती थी। मनोज के लिए तनाव का दूसरा कारण था। माया स्पष्ट रूप से शादी से पूर्व किये गये वायदों से हट गयी थी। वह परिवार के प्रति किसी भी जिम्मेवारी को निभाना तो क्या? उसने मनोज के द्वारा कोई भी सामान न लाने के निर्देश का भी पालन नहीं किया था। मनुष्य की भी क्या विडम्बना है? वह जिसको गलत कहता है, उसी को करने की कोशिश करता है। मनोज ने शादी से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि वह माया से या माया के घर वालों से किसी भी प्रकार की कोई वस्तु या धन स्वीकार नहीं करेगा। यहाँ तक कि शकुन के रूप में किसी प्रकार के वस्त्र भी उसे स्वीकार नहीं थे। किन्तु माया और उसके धोखेबाज भाई को तो झूठा नाम भी दिखाना था कि उसने दहेज में बहुत कुछ दिया है। वे कुछ देना भी नहीं चाहते थे और देने का दिखावा भी करना चाहते थे। यदि उन्हें वास्तव में कुछ देना होता तो 40 की उम्र तक माया शादी के बिना नहीं भटक रही होती। बार-बार मना करने के बाबजूद माया न जाने क्या अपने बैगों और कुछ डिब्बों में कुछ न कुछ लेकर आयी। यह मनोज के लिए तनाव का एक और कारण था। जब शादी के पूर्व ही स्पष्ट कर दिया गया था कि कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं, तो माया उसकी आत्मा को घायल करने पर क्यों उतारू थी? और जो स्त्री अपने तथाकथित पति की आत्मा पर ही वार करे वह किसी की पत्नी कैसे हो सकती है?

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