Tuesday, October 16, 2018

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३१"


मनोज को न धन चाहिए था, न यश की कामना थी। मनोज जाति व संप्रदाय में भी बिल्कुल विश्वास नहीं करता था। मनोज को धन, पद, संबन्ध या यश किसी की कामना नहीं थी। उसे तो केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन में रूचि थी। इसीलिए वह शादी करना ही नहीं चाहता था। अतः कुवारी लड़की से शादी करने का तो कोई सपना संभव ही न था। उसे परिवार की भी कोई कामना नहीं थी। मनोज को तो ऐसा साथ चाहिए था, जो उससे कभी कुछ न छिपाये। सदैव सच बोले और ईमानदारी के रास्ते का पथिक बनने के लिए तैयार हो। मनोज का यह सपना असंभव था। मनोज के साथ रहने का मतलब निस्वार्थ भाव से जीवनयापन करना। एक महिला ने तो मनोज से स्पष्ट रूप से कह ही दिया था कि जब संन्यासी की तरह जीवन जीना है तो शादी करने का क्या मतलब है? किसी का कुछ भी विचार हो। मनोज अपने रास्ते पर ‘अकेला चलो रे‘ की नीत पर चलने के लिए भी तैयार था। उसके बावजूद उसने इस आशा के साथ कि स्पष्ट बातचीत करने पर शायद कोई उसकी राह की पथिक मिल ही जाय। उसने बेवसाइट पर प्रोफाइल बनाया और वह माया के जाल में फँस गया। शिकारी के जाल में एक बार फँसने के बाद उसके जाल से निकलना मुश्किल ही नहीं होता, लगभग असंभव होता है। यही मनोज के साथ हुआ।

मनोज जब स्नातक का विद्यार्थी था। तभी उसकी कल्पना थी कि वह संप्रदाय, जाति व अन्य किसी वर्गभेद से अलग हटकर किसी ऐसी महिला को जीवनसंगिनी बनायेगा, जो किसी भी जाति की हो, भले ही समाज की परिभाषा में वह बांझ हो। भले ही उसने स्वार्थी बनाने वाली आधुनिक शिक्षा भी प्राप्त न की हो किंतु जिसमें कुछ करने की ललक हो। जो छल, कपट और झूठ से दूर रहती हो जिसमें प्रदशर्न की भावना न हो। जो सादा व साधारण जीवन जीते हुए न केवल उच्च विचार रखती हो वरन विचारों के अनुरूप उसके कर्म भी हों। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उसने मैरिज ब्यूरो का विज्ञापन देखकर विधवा/तलाकशुदा बांझ महिला से शादी के लिए पत्र भी लिखा था। किंतु उस समय अपरिपक्व विचार को क्रियान्वित करने का साहस मनोज में न था। वह पूरी तरह परिवार के उपर आश्रित था। अतः स्वतंत्र निर्णय नहीं कर सकता था और न ही उस समय शादी की उम्र थी और न ही आवश्यकता। किंतु मनोज के वे विचार समय के साथ धुधले नहीं हुए वरन् और भी प्रखर होते गये और एक दिन दया की भावना में बहकर उसने बिना किसी की स्वीकृति की अपेक्षा किए हुए। एक अनाथ, विजातीय, विधवा व निरक्षर महिला को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। यह अलग बात है कि उसका प्रयोग असफल रहा। असफल रहा यह कहना भी सत्य प्रतीत नहीं होता। उस महिला के साथ उसका तलाक भले ही हो गया हो, किंतु उस महिला का जीवन बदल गया। उस उम्र में जाकर एक निरक्षर महिला मनोज के प्रयासों से पढ़ाई शुरू करके स्नातक, स्नातकोत्तर के बाद शिक्षा स्नातक की पढ़ाई पूरी कर सकी।

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