Wednesday, May 17, 2017

हम सबको हैं चाहते, सबसे अपनी प्रीति

हम सबको हैं चाहते, सबसे अपनी प्रीति।

अपने दिल पर किसी को, नहीं मिली है जीत॥



स्वार्थ हित है मित्रता, उठात पल में शस्त्र।

गला काटने को यहां, बनाते हैं बस मित्र॥



शत्रुओं के गृह बसें, वहीं रहे आबाद।

साथ चलें वह मित्र है, उनकी ना की माद॥



जो अपना हुआ नहीं, क्यों करता तू याद।

पथ अपने पर चल सखे, ना कोई फ़रियाद॥



अपनी चादर देखकर, अपने पैर पसार।

अपनी कमाई देखकर, रोटी और अचार॥



लूट सके तो लूट ले, खुशियों की बरसात।

चाहत उतनी ही करो, जितनी है औकात॥



जिसके पास जाओगे, मारेगा वह चोट।

सबके अपने हित जुड़े, ना है उनका खोट॥



मित्र का विलोम शत्रु है, पढ़ते आये लोग।

शत्रु मित्र के मध्य भी, होता है कुछ जोग॥



सम्बन्ध किसी से बनें, चार बार तू सोच।

सुरक्षित दूरी पर रहो, वरना आवे मोच॥



जैसे हम हर वस्तु का, नहीं लगाते भोग।

सबसे ना हो मित्रता, सही कहत हैं लोग॥



फ़ेसबुक की है मित्रता, करना ना विशवास।

दूर के ही ये मित्र है, कभी न आयें पास॥


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